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Wednesday 12 September 2012

"आक्रोश की अभिव्यक्ति और स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति के बीच की महीन रेखा"


[असीम त्रिवेदी- "आक्रोश की अभिव्यक्ति और स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति के बीच की महीन रेखा को समझने में नाकाम कार्टूनिस्ट...!!!!"
इनके देशभक्ति के ज़ज्बों को कई निगाहों से देखा जा रहा है.... युवा हैं,अगर खून में देश के लिए उबाल है तो अच्छा है.. परन्तु राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान कहाँ तक उचित है...????
या तो ये हीरो बनना चाह रहे हैं या कोई मुहिम छेड़ना चाह रहे हैं  ????
कई सवालों के निशाने पर.. देशद्रोह की कार्यवाही के निशाने पर...]

कई मित्रों के साथ इस विषय पर हुयी एक  चर्चा  के बाद मन में ख़याल आये कई...
आपके सामने रखना चाह रही हूँ...
पूर्ण चर्चा का निष्कर्ष निकला कि "हमारे नैतिक मूल्य और कर्तव्य, राष्ट्र / राष्ट्रीय प्रतीक / संवैधानिक  संस्थाओं के प्रति अपने नीति निर्देशक कर्तव्य  हमारे  लिए सर्वोपरि हैं ..."
हाँ मैं इस से पूर्णतया सहमत हूँ...

परन्तु एक निष्कर्ष और जो मैंने निकला वो यह है कि.. हमारे नेता तो इतने बेशर्म हो चले हैं कि उनके कार्टून्स बाज़ार में बिकते हैं.. इन्टरनेट पे प्रदर्शित होते हैं.. अखबारों में छपते हैं.. परन्तु वे अपनी हरकतों से बाज नहीं आते... कुछ ज्यादा ऊपर-नीचे हो तो उसको प्रतिबंधित करवा देते हैं...
अफजल ,कसाब  और अमर जवान  ज्योति को लातोँ से तोड़ने वालों को कोई फर्क नहीं पड़ता कार्टून्स से....
कार्टूनिस्ट्स बस अपना काम करते रहते हैं... चाहे वो देशभक्ति के लिए हो या आजीविका के लिए... हम लोग देखकर ठहाके लगा लेते हैं... बस हो गया कार्टून का बनना सार्थक...
इतना ही है कार्टून का औचित्य सही मायनों में देखा जाए तो...

परन्तु असीम ने कार्टून कि दुनिया में एक नयी चुनौती को हमारे सामने लाकर एक ऐसा चित्र प्रस्तुत किया है कि हम उसके औचित्य को समझे हैं... भले ही वो देशद्रोह का अपराधी हो परन्तु उसने अपने आक्रोश को जताया तो... हाँ एक युवा और देशभक्त होने कि वजह से वह आक्रोश कि अभिव्यक्ति और अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता के बीच भेद नहीं देख पाया... गर्मजोशी से भरा हुआ उसका खून कह रहा है "कि मैं एक देशभक्त हूँ"

न जाने कितने लोग कुछ हमारे देश के अन्दर के और कुछ बाहर के रोज़ हमारे देश में देशद्रोह कर रहे हैं... बस तरीके अलग अलग हैं... पर देशद्रोह का मुक़दमा असीम पर जितनी तत्परता से चलाया जा रहा है असली देशद्रोहियों पर नहीं चलाया गया... क्यूँ?????
क्यूंकि "असीम त्रिवेदी" अपने आप को "देशभक्त" कह रहा है... और ये बताना चाह रहा  है कि किस तरह देश में इन राष्ट्रीय प्रतीकों कि आड़ में भ्रष्टाचार पनप रहा है..
परन्तु उसका तरीका गलत है...!!!!
मैं कतई इस बात से सहमत नहीं कि असीम त्रिवेदी ने जो किया वो सही है... हमारी चर्चा का जो निष्कर्ष है उस से मैं पूर्णतया सहमत हूँ...
हाँ असीम त्रिवेदी ने जो किया है उसमे अन्तर्निहित तथ्य सही है.. पर लहजा गलत...
हमारे देश के युवा खून को उस अन्तर्निहित तथ्य को जानने का एक बेहतर अवसर प्रदान किया है असीम त्रिवेदी ने.... बस तरीका सही और देश के हित में हो... तो हमारे युवाओं को जागृत करने के लिए ये एक अच्छा उदाहरण है...

6 comments:

  1. चरमवादी सोच . एक बुराई को दर्शाने के लिए खुद बुराई को प्रश्रय देने वाली बात हुई .इस बात से मै भी सहमत हूँ की कार्टूनिस्ट ने अति उत्साह में ये गलती की है और लेकिन वो देशद्रोही नहीं हो सकता.

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  2. जो जैसा है, उसमें परिवर्तन कैसा ! जो परिस्थितिवश गलत हो,उसमें सुधार होता है, बाकी सब लाचार

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  3. मीनाक्षी जी मैं आपकी बात से पूर्णतया सहमत हूँ. आक्रोश की अभिव्यक्ति भी शालीनता से की जा सकती है. परन्तु बहुदा यह संभव नहीं हो पाटा और ऐसा व्यवहार ही उन शैतानों को बचा लेता है.

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  4. धन्यवाद रचना जी.....

    एक उदाहरण देना चाहूंगी....
    अगर हमारे परिवार मे कोई अच्छा ख़ासा स्वस्थ आदमी अर्धविक्षिप्त या पागल हो जाए और उलटी-सीधी ,उल-जलूल हरकतें करने लगे तो क्या हम उसे घर से बाहर फैंक देंगे या एक कोठरी में बंद कर देंगे..... ??
    नहीं...!!
    हम psychiatric के पास जायेंगे... कारण पता करेंगे की उसकी इस हालत के पीछे कौन सी परिस्थितियां जिम्मेदार हैं .... और वो कैसे ठीक होगा ... आगे से ऐसा कुछ ना हो.. उसके लिए क्या
    सावधानियां रखनी होंगी....

    असीम त्रिवेदी की हालत भी कुछ उस मरीज़ से मिलती जुलती है...

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